Saturday 2 March 2013

ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है...

मन की चादर बहोत ही मैली है,
आओ गंगा को चल के गन्दा करें।
इन्सानियत नहीं है लोगों में,
धर्म का इनसे चलके धंधा करें।
ना तुम्हारी है और ना मेरी है,
सरे-बाज़ार इसको नंगा करें।
हमको खुद तो कुछ ना करना है,
दूसरों के काम में भी डंडा करें।
हममें बन्दर की नस्ल अब भी है,
बेवजह दूसरों से पंगा करें।
इतने दिनों से क्यों सुकूं है यहाँ,
चलो ना आज फिर से दंगा करें।
ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है,
मुख्तलिफ़ रंगों से इसको रंगा करें।
देश अपना बड़ा बीमार है 'श्वेत',
चलो सब मिलके इसको चंगा करें।