कोई नहीं कुछ करता है, इस बात पर रोते रह्ते हैं.पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं..उस पर बीत रही है, उससे हमको क्या लेना-देना.इस पचडे में पडने से, अच्छा है यारा दूर रहना..कर्तव्यों से मुंह चुराकर अपना, हम सबकुछ खोते रह्ते हैं…पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं..गर आग पडोस में लगी है, अपने घर तक तो आनी ही है.रेत में मुंह छुपा लेना, ये बात तो बेमानी ही है..क्यों अत्याचारों का बोझ, हम जीवन भर ढोते रहते हैं???पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…इन्सां वो भी, इन्सां हम भी, वो एक हैं, हम हैं अनेक.क्यों ना मिलकर हम सब, बन जयें एक ताकत नेक..नींद उडा दें उनकी, जो हमें लडाकर, चैन से सोते रहते हैं…पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…हक नहीं है हमको उन पर, उंगलियां उठाने का.जब उनको हम, आगे बढने का मौका देते रहते हैं..पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…
Sunday 10 June 2012
जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…
कोई फैसला तो किया करो….
अच्छा हो कि बुरा हो, कोई फैसला तो किया करो.
एक ओहदा अता हुआ है तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
तुम जिस जगह पहुँच गये, हो वहाँ के नही हकदार तुम.
पर क्या कुछ ऐसा भी है, कि हो नही खुद्दार तुम..
यूं आँख मूंदे रात कब तक, अब तो कोई सुबह करो…
एक ओहदा अता हुआ है तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
कोई चुप कहे तो चुप रहे, कहे बोल तो तुम बोलते हो.
कुछ तो तुम्हें भी अक्ल होगी, कुछ तो तुम भी सोचते हो..
कुछ कर नहीं सकते हो तो, कम से कम दुआ करो…
एक ओहदा अता हुआ है तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
इस देश के तुम बन रहे, क्यों इक नए कलंक हो.
अब तुम खुद ही फैसला करो, तुम राजा हो या रंक हो..
कि अब छोड अपनी गद्दी को, इस देश का भला करो…
एक ओहदा अता हुआ है तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
Friday 8 June 2012
घोटालों के दोषी…
यूँ ही छत की मुन्डेर पर खडे मैं सोच रहा था,
हाल ही में हुए घोटालों के बारे में,
और उनसे जुडे लोगों के बारे में.
मीडिया ने बताया -
- उन नेताओं के बारे में,
जो इन घोटालों से हुए हैं,
सबसे ज्यादा लाभान्वित,
चंद महीनों की जेल हुई.
और कुछ दागी होते हुए भी,
रहे बेदाग!
- उन कम्पनीज के बारे में,
जिन्होंने उनसे करोडों कमाए,
या जिनके डूब गए करोडों,
और बन्द हो गए।
पर भूल गई मीडिया,
इन घोटालों से प्रभावित होने वाले,
- उन लोगों को,
जिनपर इनका सीधा प्रभाव पडता है,
वो हैं इनमें काम करने वाले,
आम लोग!
जो हो गए हैं आज
बेरोजगार!
और हैं मजबूर, लाचार,
करने को कुछ भी,
आत्महत्या भी??
आखिर क्यों भूल जाती है,
ये मीडिया, ये कम्पनीज,
और ये सरकार?
कि इनकी भी रोजी-रोटी
चलती है, इन्हीं बेरोजगार,
बेसहारा, लाचार और मजबूर,
आम लोगों से;
जिनके पास, आज नहीं तो कल,
इन्हें जाना ही है,
झूठे वादे, झूठे दिलासे लेकर,
इन आम लोगों की बेबसी का,
एक बार फिर फायदा उठाने.
आखिर क्यों भूल जाते हैं,
लोकतन्त्र के ये शाह,
आम लोगों को???
Thursday 7 June 2012
सच और झूठ…
सच और झूठ में,
फर्क बस इतना है.
जो हम सुनना चहते हैं,
वो है सच!
और जो कहते हैं,
वो झूठ!!
ना कुछ सच है,
और ना ही कुछ झूठ…
बस हमरी सोच है!!!
जिसने जो चाहा, वो पाया !!!
हमने इल्तजा की थी,
उनको शिकायत लगी.
हम खुश थे,
और
वो नाराज…
जिसने जो चाहा, वो पाया !!!
Wednesday 6 June 2012
जिन्दगी में वो कभी विफल नहीं होता…
जिनके हौसलों में शंका का बादल नहीं होता.
जिन्दगी में वो कभी विफल नहीं होता..
और जिनको ऐतबार ना हो अपने आप पर.
वो शख्स कभी उम्र भर सफल नहीं होता..
पत्थर नहीं उछालता कोई उन दरख्तों पर.
जिनकी शाखों पर कोई फल नहीं होता..
रात ना होती कभी इतनी गहरी, काली.
जो तुम्हारी आँखों में काजल नहीं होता..
संसद में ढूंढ रहे थे हम, एक अच्छा नाम.
पर कीचडों में शायद अब कंवल नहीं होता..
ऐ 'श्वेत' शायद तुझको कोई पहचानता नहीं.
अगर तू लिखता ग़ज़ल नहीं होता..
Tuesday 5 June 2012
दिल में है दर्द, तो गजल करना पडेगा...
अपने शब्दों को थोडा सरल करना पडेगा.दिल में है दर्द, तो गजल करना पडेगा..गर बनना है सूरज, चमकने के लिये तो.दोस्तों अन्दर ही अन्दर, जलना पडेगा..मन्जिलों तक पहुँचना है तो रस्तों पर.तन्हा बहोत दूर तक, चलना पडेगा..बदलाव कोई बडा, लाना है तो 'श्वेत'.पहले खुद अपने आप को बदलना पडेगा..वरिष्ठ जनों का हार, बनाने के लिये माली को.कुछ मासूम फूलों को, मसलना पडेगा...
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