ये सच है,
मुझे मंज़िल की तलाश नहीं!
क्योंकि, मंज़िलों पर पहुंचकर,
बैठ जाते हैं, लोग...
आराम से,
इत्मिनान से,
बेफिक्र!
जैसे,
करने को कुछ, बचा ही ना हो।
मैं तो चाहता हूँ,
चलना, उन रास्तों पर,
जो जाती तो हो,
मंज़िल की ओर,
पर पहुंचती ना हो!!
क्योंकि, मैं नहीं चाहता,
आराम से बैठ जाना।
चाहता हूँ, भटकते रहना,
अपनी मंज़िल के लिए।।।
ताकि,
ढूँढ सकूँ,
और भी,
अनगिनत,
अनभिज्ञ रास्ते,
जो जाते हों,
मंजिल की ओर।
क्योंकि,
मेरी जिज्ञासा, सिर्फ मंज़िल पाने की नहीं,
बल्कि,
उस तक पहुँचने के,
अनगिनत रास्ते खोजने की है...
No comments:
Post a Comment