Thursday 31 January 2013

सभ्य समाज...

हमें चिढ़ है,
भेड़ चाल से,
तभी तो हम रहते हैं,
हमेशा, जल्दी में,
आगे निकलने की होड़ में...
दूसरों का रास्ता काटते हुए,
या,
उन्हें पीछे धकेलते हुए,
हॉर्न बजाते हुए...
क्योंकि,
हम निर्माण कर रहे हैं,
एक सभ्य समाज का...

Sunday 13 January 2013

भटकन...

कल रात, कोई आह सी जल रही थी।
जैसे, कोई शम्मा सी पिघल रही थी।
कई मरासिम से जैसे छूट रहे थे।
कुछ अपने, अपनों से रूठ रहे थे।
कुछ मदहोश लोग, होश की बातें कर रहे थे।
ज़ज्बे नहीं पर जोश की बातें कर रहे थे।
अच्छे लम्हे, बुरे लम्हों से शिकायत कर रहे थे।
कभी खुद से, कभी औरों से अदावत कर रहे थे।
लोगों में देखा बहोत रोष था।
फ़क़त कुछ ही दिनों का ये आक्रोश था।
हाँ! चले थे सभी रौशनी की तरफ,
पर वो जुगनू से ज्यादा कुछ नहीं था।
पर वो जुगनू से ज्यादा कुछ नहीं था।।


Monday 7 January 2013

मैं अनलहक हूँ...

मैं,
अनलहक* हूँ...
सच तो यही है,
ना, मानने की बात है।
दुनियां,
इसी बात से खफा होती है,
और कभी,
इसी बात को स्वीकार करती है;
उसकी मर्जी की बात है।
मन आया,
मान गया,
वगर-ना,
ज़हर का प्याला...
कभी सर कलम...
और कभी,
सूली पर लटका दिया...
और जब उसे,
अपनी इस करतूत से शांति मिल गयी;
तो बुत बनाया,
और शुरू कर दिया,
उसे, 
पूजने का ढकोसलापन।।।

*अनलहक - मैं इश्वर हूँ।