Wednesday, 30 May 2012

जनता का तो बज गया बाजा, अन्धेर नगरी, चौपट राजा…


जनता का तो बज गया बाजा,
अन्धेर नगरी, चौपट राजा..
२जी घोटाला करे ’ए राजा’,
अन्धेर नगरी, चौपट राजा..
पूछा जो उनसे, तो कहते हैं राजा,
सब करते हैं घोटाले, कोई हमको नहीं बताता..
जनता का तो बज गया बाजा, अन्धेर नगरी, चौपट राजा…
तोहमत तो हमपर ऐसे ना लगाओ,
चोर आप हमको ऐसे ना बुलाओ.
सब खाते होंगे, मैं नहीं खाता..
जनता का तो बज गया बाजा, अन्धेर नगरी, चौपट राजा…
पर राजा जी इतना तो बताओ,
जो चोर हैं, उनको तो हटाओ.
दुनियां सरी पहचाने है उनको, क्यों आपको ही वो नजर नहीं आता..
जनता का तो बज गया बाजा, अन्धेर नगरी, चौपट राजा…

कातिल तो एक ही था, पर खन्जर बदल गए.…


कातिल तो एक ही था, पर खन्जर बदल गए.
कुछ इस तरह से सारे, मन्जर बदल गए..
हमको तो मिल ही जाता, वो प्यार का मोती.
बदकिस्मती अपनी, कि समन्दर बदल गए..
गर जीतना है जीतो, दिलों को मेरे दोस्त.
वतन जीतने वाले सभी, सिकन्दर बदल गए..
सच-झूठ और सारे नियम कानून.
रिश्वत मिली तो सरे, अन्तर बदल गए..
देखकर संसद की हालत, ’श्वेत’ सोचता हूँ.
जानवर बदल गए हैं, या जंगल बदल गए..

Tuesday, 29 May 2012

स्वर्ग तो ‘माँ’ की ही गोद मिले है…


मुद्दत बाद वो हमसे मिले हैं.
जाने कैसे दिल पिघले हैं..
ये दर्द ना पूछो किसने दिये हैं.
हमने तो अपने होंठ सिले हैं..
इश्क में दीवाली पर ऐ ’श्वेत’.
दीप नहीं, दिल ही तो जले हैं..
झूठ की आँखों पर पट्टी है.
पर सच के तो होंठ सिले हैं..
दोनों जहाँ जब भटके तो समझे.
स्वर्ग तो ’माँ’ की ही गोद मिले है…

Monday, 28 May 2012

वर्तमान!!!


वक्त की चदर ने सब कुछ ढंक रखा है.
जैसे-जैसे,
परत-दर-परत,
ये खुलती जाती हैं..
हम भविष्य के चेहरे से,
रू-ब-रू होते जाते हैं…
और जैसे-जैसे गुजरते जाते हैं,
खो जाते हैं,
वक्त के आगोश में,
कहे-अनकहे,
सुलझे-अनसुलझे,
अनगिनत राज!!!
कुछ भी नहीं रह्ता,
संज्ञान में…
ना भविष्य,
और ना ही भूत…
ये सब वक्त का ही मायाजाल है!!
गर इसके मायाजाल से
कुछ अनछुआ है,
तो वो है,
वर्तमान!!!
जिसे हम जी सकते हैं..
महसूस कर सकते हैं…
और
बदल सकते हैं…
अपनी सोच से…..

किसी अपने की दुआओं का असर होता है…


कोई डूबता सा गर दरिया में पार होता है.
ये किसी अपने की दुआओं का असर होता है..
बस उन्ही राहों का आसान सफर होता है.
जिनको अपने पर भरोसा जो अगर होता है..
छोड हमें यहाँ, चले जाते हैं जो उस नगरी.
वहाँ रहने को क्या, उनका कोई घर होता है???…

Thursday, 24 May 2012

मजा किसी को, सजा किसी को….


तू करके चोरी फंसा किसी को.
मजा किसी को, सजा किसी को..
जो गर तरक्की तुझे है करना.
दबंग बनके दबा किसी को..
CWG, 2G, आदर्श, चारा.
तू कर घोटाले, फंसा किसी को..
सफेद कपडे, दिलों में कालिख.
दिखा किसी को, छुपा किसी को..
कसाब पर कर करोडों खर्चे.
कमाई किसी की, लुटा किसी को..
ये जनता तो है ही गूंगी-बहरी.
कि चाहे जैसे, नचा किसी को..
हजारों वादे हम करके मुकरे.
ना पूरा हमने किया किसी को..
भगवान है, अब तो पैसा-पावर.
कि अब तो सजदे अता इसी को..
मँहगाई कम होगी सब्सिडी से.
कि दे किसी को, लुभा किसी को..
ये काला धन रख स्विस तिजोरी में.
कि देश अपना लुटा किसी को..
मुजरिम है इस गुनह का, मंत्रि-बेटा.
कर अन्दर लगा के दफा किसी को..
फिर ’श्वेत’ तू रह गया ना तन्हा.
कब रास आई, वफा किसी को..
तू फिर आ इस धरती पर ऐ खुदारा!
बचा किसी को, मिटा किसी को..

याद मुझे कोई आता बहोत पुराना है…

दिल से दर्द का नाता बहोत पुराना है.
याद मुझे कोई आता बहोत पुराना है..
जाने कबसे सुन रहा हूँ लोगों की,
कोई तो सुन लो मुझे भी कुछ सुनाना है..
आँखें उसकी जाने कबसे पथरा गयी,
हँसी उडाओ उसकी उसे रुलाना है..
इश्क है उनसे बात बहोत पुरानी है,
सबने सुना पर उनको भी तो सुनाना है..
लूटो, मारो, छीनो, कटो, कत्ल करो,
राम-रहीम के चक्कर भी तो लगाना है..