वक्त की चदर ने सब कुछ ढंक रखा है.
जैसे-जैसे,
परत-दर-परत,
ये खुलती जाती हैं..
हम भविष्य के चेहरे से,
रू-ब-रू होते जाते हैं…
और जैसे-जैसे गुजरते जाते हैं,
खो जाते हैं,
वक्त के आगोश में,
कहे-अनकहे,
सुलझे-अनसुलझे,
अनगिनत राज!!!
कुछ भी नहीं रह्ता,
संज्ञान में…
ना भविष्य,
और ना ही भूत…
ये सब वक्त का ही मायाजाल है!!
गर इसके मायाजाल से
कुछ अनछुआ है,
तो वो है,
वर्तमान!!!
जिसे हम जी सकते हैं..
महसूस कर सकते हैं…
और
बदल सकते हैं…
अपनी सोच से…..
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